चरक संहिता आयुर्वेद की एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। आयुर्वेद के विधार्थियो के लिए चरक पढ़ना अतिआवश्यक है। यहाँ पर आप चरक संहिता के कुछ मुख बिन्दुओं को देखते है…
महर्षि पुनर्वसु आत्रेयोपदिष्टा श्रीमदग्निवेशप्रणीता चरकदृढबलप्रतिसंस्कर्त्ता ।
चरक संहिता के उपदेष्टा कौन थे?
उपदेष्टा / मूल उपदेष्ट – आत्रेय पुनर्वसु (काल 1000 ई. पूर्व ) [BHU 90, 93, Tri 1995]
चरक संहिता के तंत्रकर्ता कौन थे?
तंत्रकर्ता / संस्कर्ता – अग्निवेश (अग्निवेशतंत्र) (काल 1000 ई. पू.) (BHU 2003, 90,88 प्रतिसंस्कर्ता / भाष्यकार चरक (काल 2 री शती ई. पू.)
चरक संहिता के प्रतिसंस्कर्ता या सम्पूरक कौन थे?
द्वितीय प्रतिसंस्कर्ता / सम्पूर्णकर्ता / पूरक / सम्पूरक – दृढबल 4थी शती
चक्रमाणि अनुसार – चरक द्वारा लिखित चिकित्सा स्थान के अध्याय – 13 [1 से 8, अर्श (14), अतिसार (19), विसर्प (21) द्विव्रणीय (25), मदात्यय (24) ]
परन्तु द्विव्रणीय अध्याय (25) की पुष्पिका में इसे दृढबल द्वारा पूरित बताया गया है यथा-
“इत्यग्निवेशकृते तन्त्रे चरकप्रतिसंस्कृते दृढबलसम्पूरिते चिकित्सास्थाने द्विव्रणीयचिकित्सितं नाम पञ्चविंशोऽध्यायः ॥25॥ “
तथा विष अध्याय (23) की पुष्पिका में इसे चरक द्वारा पूरित बताया गया है, यथा-
‘इत्यग्निवेशकृते तन्त्रे चरकप्रतिसंस्कृते चिकित्सास्थानेविषचिकित्सितं नाम त्रयोविंशोऽध्यायः ॥23॥’
(दृढबल द्वारा पूरित अध्याय 41 अध्याय = चिकित्सा स्थान 17 + कल्पस्थान 12 + सिद्धिस्थान 12 )
[BHU 2006, Tri. 19]
स्थान एवं अध्याय 120 अध्याय 8 स्थानों में निवद्धित है [BHU-2000, 2001, 2003, 2004]
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