जालंधर बंध द्वारा दंत निर्हरण (Dental Extraction By Jalandhar Bandha).
जालंधर पद की व्युत्पत्ति जाल को धारण करने से है। कुछ संस्थायें एक ऋषि जालंधर द्वारा इस बंध का प्रतिपादन करने से नामकरण जालंधर बंध मानते है। जाल अर्थात् नाड़ी समूह का बंधन या नियमन भी इसका उद्देश्य दर्शाता है।
सुश्रुत ने कृमिदंत, दालन, भंजनक, कपालिका, श्यावदंत रोगों में दंत निर्हरण का प्रावधान किया है। आधुनिक दंत चिकित्सा भी इस प्रकार के रोगों में दंत निर्हरण का सुझाव देती है।
यह सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर लगाया जाता है। हाथ जानु पर रखें; गहरी श्वास लेकर भीतर रोक लें। कधों को ऊपर उठायें व थोड़ा आगे को झुकें। पीठ को सीधा रखें। हनु को झुका कर श्वासनलिका पर दृढ़ता से लगायें। जिह्वा को तालु पर दबा कर रखें। विशुद्धि चक्र पर ध्यान केंद्रित करें व जब तक आसानी से संभव हो, श्वास रोककर रखें। तत्पश्चात् लम्बी सांस छोड़ते हुये हनु को धीरे-धीरे ऊपर ले आयें व धीमी सांस लेते हुये एक मिनट तक सुखासन में बैठे रहें। ऐसी 3-6 आवृत्तियाँ करें।
जालंधर बंध द्वारा दंत निर्हरण विधि:-
1.सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर
2.हाथ जानु पर रखें।
3.गहरी श्वास लेकर भीतर रोक लें।
4.कधों को ऊपर उठायें व थोड़ा आगे को झुकें।
5.पीठ को सीधा रखें।
6.हनु को झुका कर श्वासनलिका पर दृढ़ता से लगायें।
7.जिह्वा को तालु पर दबा कर रखें।
8.विशुद्धि चक्र पर ध्यान केंद्रित करें व जब तक आसानी से संभव हो, श्वास रोककर रखें।
9.तत्पश्चात् लम्बी सांस छोड़ते हुये हनु को धीरे-धीरे ऊपर ले आयें व धीमी सांस लेते हुये एक मिनट तक सुखासन में बैठे रहें।
10.ऐसी 3-6 आवृत्तियाँ करें।
जालंधर बंध द्वारा दंत निर्हरण कैसे काम करता है:-
लाभ- इस विशेष मुद्रा में ग्रीवा गत मेरुदंड में तनाव बढ़ता है उसी समय शिर मे रक्त संचार बढ़ता है। कैरोटिड धमनी व कैरोटिड नाड़ी पर विशेष दबाव पड़ता है जिससे मस्तिष्क गत क्रियाओं में बदलाव आ सकता है। एक संभावना यह होती है कि मस्तिष्क को कैरोटिड धमनी पर दबाव बढ़ने का संदेश मिलता है जिससे मस्तिष्क रक्तदाब कम करने के प्रयास आरम्भ कर सकता है व उच्चरक्तचाप के रोगी लाभान्वित हो सकते हैं।
दंत आहरण (Dental Extraction) में भी पारंगत योग शास्त्री इस जालंधर बंध का प्रयोग करते हैं जिससे बिना पीड़ा व रक्तस्राव के दांत निकाला जाता है। इसमें किसी Local anaesthesia, Injection, दर्द निवारक Antibiotic की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस प्रक्रिया में रोगी को निःशेष जांच करके रोगों को उस विधि से अवगत कराया जाता है ताकि वह पूर्ण सहयोग दे सके, रोगी को आराम से सुखासन में बिठाकर दोनों हाथ जानुसधि पर रखने को कहा जाता है। दंत चिकित्सक या पारंगत योगाचार्य रोगी के पीछे खड़े होकर उसके सिर को झुकाकर चिबुक को कंठ से लगा देते हैं। यह जालंधर बंध है। चिकित्सक अपनी एक जानुसधि से रोगी के पृष्ठ पर सुषुम्ना नाड़ी पर दबाव बनाता है व बायें हाथ से Trigeminal Nerve को दबाता है। अब रोगों का सिर 2-3 बार ऊस नीचे हिलाया जाता है व सिर को उठाकर सिंह मुख यंत्र से वांछित रुग्ण दांत को पकड़कर खींच कर निकाल दिया. जाता है। रक्तस्राव रोकने हेतु एक पिचु द्वारा खाली Socket को भर दिया जाता है। तत्पश्चात् 30 मिनट आराम करा कर नस्य दिया जाता है व बाद में गंडूष भी कराया जा सकता है। ग्रीवा की नाड़ियों व धमनियों पर दबाव के कारण पीड़ा व रक्त स्राव नहीं होता है। मधुमेह, रक्तस्रावी रोग, उच्चरक्तचाप, पाण्डु, गर्भावस्था आदि में विशेष सावधानी से दंतनिर्हरण करना चाहिये।
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